सड़क
तुम्हारी गलतीयो का ही है असर,जो सुनसान है ये सड़क।
कल तलक करते थे कितने ही इस पर सफर, अब पड़े हैं सब अलग थलग।
उदास रास्ते, खामोश मंजर,बस दूर तलक तन्हा है डगर।
तुम्हारी गलतीयो का है असर,जो सुनसान है ये सड़क।
न कोई शोर, न कोलाहल, न आपाधापी, ना ही कोई हड़बड़ाहट,
जो कुछ है, तो दूर तलक है सिर्फ़ खामोशी ही खामोशी और सुनसान सी ये एक सड़क।
तुम्हारी गलतीयो का ही है असर,जो सुनसान है ये सड़क।
रौशनी, आवाज और रफ्तार से कभी करती थी ये खिलवाड़,
परन्तु आज शांत है, खामोश है, उदास है,जैसे कि अंदर व्यथाओ का हो अंबार।
खुद ही खुद में बातें करती, ढांढस बंधाती, हिम्मत देती, कहती यही हर बार,
थोड़ा धीरज धरो,बस कुछ ही दिनों का तो है वनवास।
मैं फिर दौडुगी,भागुंगी, करूंगी पहले सा व्यवहार
मेरा ठहराव मेरा अन्त नहीं, न ही इसको मानो मेरी हार।
मैं फिर तुम्हारे साथ चलुंगी, बन कर तुम्हारा हमसफर, मगर फिर भी सच तो यही है कि,
तुम्हारी गलतीयो का ही है असर,जो सुनसान है ये सड़क।